बेगूसराय, 01 दिसम्बर : बिहार प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष अमिता भूषण ने किसानों द्वारा जारी राष्ट्रव्यापी विरोध का समर्थन करते हुए सरकार पर जोरदार हमला किया है। उन्होंने कहा कि हर चीज बिक चुकी है सिर्फ जमीर बचा है, ये भी बिक गई तो फिर कुछ बिकने के लिए रह नहीं जाएगा। अमिता भूषण ने मंगलवार को यहां कहा है कि राष्ट्रपति की मुहर के बाद केंद्र सरकार द्वारा लाया गया तीन नया कृषि विधेयक कानून की शक्ल ले चुका है।
इन कानूनों का विरोध ना सिर्फ विभिन्न राज्यों के किसान और पांच सौ से ज्यादा किसान संगठन कर रहे हैं, बल्कि सरकार के अंदर भी इन कानूनों के प्रति कभी आम सहमति नहीं रही। सरकार ने तमाम विरोधों के बाबजूद जब इन किसानों के आपत्तियों की सुधि नहीं ली तो पंजाब, हरियाणा, यूपी, राजस्थान से लगी दिल्ली की सीमा पर ऐसी विस्फोटक स्थिति बनी हुई है। एक तरफ निहत्थे किसान, दूसरी तरफ सरकार के पुराने आजमाए हथियार आंसू गैस, वाटर कैनन, लाठियां, मुकदमें। सरकार अब अपनी ऊर्जा सिर्फ दो जगह निवेश कर रही है। पहली यह साबित करना कि यह किसान नहीं, बल्कि पाकिस्तानी और खालिस्तानी देशद्रोही हैं। दूसरी, हैदराबाद नगर निकाय चुनाव का प्रचार प्रसार और बंगाल की राजनीति को हिन्दू मुस्लिम की हद तक लाना।
सरकार के पास इन दो कामों के लिए पर्याप्त समय है, लेकिन ठंढ में ठिठुरते किसानों की सुधि लेने के लिए समय नहीं है। आखिर किसानों के अंदर इस कानून का इतना खौफ क्यों है, इसके लिए तीनों कानून को समझने की जरूरत है। इसके विरोध में किसानों की मांगें क्या है, यह जानना जरूरी है, आखिर सरकार इस कानून को थोपने पर आमादा क्यों है। किसानों का कहना है कि यह ना सिर्फ उनके लिए, बल्कि आम जन के लिए भी खतरनाक है। कृषि उपज जुटाने की कोई सीमा नहीं होगी, उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी और सरकार को पता नहीं चलेगा कि किसके पास कितना स्टॉक और कहां है।
आंदोलनकारी किसान संगठन केंद्र सरकार से तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं और इनकी जगह किसानों के साथ बातचीत कर नए कानून लाने को कह रहे हैं। उन्हें आंशका है कि लाए गए नए कानून से कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका नुकसान किसानों को होगा। लेकिन केंद्र सरकार साफ कर चुकी है कि किसी भी कीमत पर कृषि कानून को ना तो वापस लिया जाएगा और ना ही उसमें कोई फेरबदल किया जाएगा। फैसला जनता को लेना है कि वे सरकार की हर चीज को बेच देने की नीयत के साथ हैं या अपनी खेती और जमीन को बचाने ठंढ में सड़कों पर उतरे किसानों के साथ।