न्यूज डेस्क : बुधवार देर शाम नहीं रहे डाक्टरों के गुरूजी डा सीताराम बाबू। उन्होंने मंझौल स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस लिए । वह विगत कुछ समय से बीमार चल रहे थे। बेगूसराय के मंझौल के डा चंद्रदेव उर्फ डाक्टर सीताराम बाबू लगभग शतक की उम्र पूरा करने वाले थे। वर्ष 1922 में मंझौल में उनका जन्म हुआ था। मंझौल के बड़े प्रतिष्ठित किसान सूरजनारायण सिंह उर्फ सुरूज बाबू उनके पिता थे। बेगूसराय जिले के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी रामकिशोर सिंह उर्फ राम बाबू जो बिहार केशरी डा श्रीकृष्ण सिंह के के सहपाठी थे के परिवार में जन्म लेने के कारण शुरू से ही वे स्वतंत्रता प्रेमी रहे।
पीएमसीएच से डाकटरी की डिग्री लेने के बाद उन्होंने आजादी बाद बिहार सरकार में सरकारी डाक्टर की नौकरी पकड़ ली। लेकिन, सरकारी व्यवस्था से ऊबकर नौकरी से त्याग पत्र दे दिया और मंझौल के अपने घर पर चिकित्सा सेवा देने लगे।एक ऐसे डाक्टर जिन्होंने कभी अपना साइन बोर्ड नहीं लगाया। खुद माइक्रोस्कोप से पैथोलॉजी जांच करते। मरीजों को नब्ज और लक्षण पूछकर बीमारी बता देते और फिर सुप्रीम कोर्ट की तरह इलाज। मरीज या परिजन को बीमारी बता देते तो भारत के किसी कोने में इलाज कराने पर इनकी बात ही सच निकलती। मरीज और परिजनों का कहना था कि सीताराम डाक्टर जो कह दिए वहीं सच होगा। किसी डाक्टर की हिम्मत नहीं की इनके कहे बीमारी और इलाज को काट दे।
कम फीस और रोब से करते थे इलाज कहते थे मैं किसी को बुलाता नहीं हूं। न प्रचार-प्रसार न साइन बोर्ड। भागो जाओ शहर में बड़का बड़का साइन बोर्ड लगाकर पाकेट काटने वाला बड़का बड़का डाक्टर बैठा है। मरीज और परिजन तब भी नहीं भागते। जब मर्जी तब मरीज को देखते। मरीज बैठकर उनकी प्रतीक्षा करते। तब बेगूसराय और आसपास में कम डाक्टर थे। गरीबों और कमजोर को फीस माफ और ऊपर से फीजियशन सैंपल की दवा। एम आर या दवा एजेंट कै घंटों पढ़ाते रहते। पटना के नामी-गिरामी डाक्टर एकेएन सिन्हा, शिवनारायण सिंह, डाक्टर घोषाल,भी मुखोपाध्याय, आदि की मंडली के सदस्य हुआ करते थे।
विभिन्न विषयों के जानकार और भाषणबाजी में माहिर डाक्टर चंद्रदेव घंटों बोलते रहने की क्षमता रखते थे। विज्ञान डाक्टरी से लेकर साहित्य संस्कृति तक गांव समाज से लेकर समाज सुधार तक। आजादी आंदोलन में दलितोद्धार आंदोलन के जनक और छुआछूत से कोसों दूर। राजनीति में गहरी अभिरुचि। राजनीतिक लोगों पर जमकर बरसते। गालियां पढ़ने में भी गुरेज नहीं। जमींदारी ठस्से के साथ राजनीतिक आलोचना करते। वे 1977 में चेरियाबरियारपुर विधानसभा क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव भी लड़े और हारे भी।
महात्मा गांधी,डा राजेन्द्र प्रसाद,डा श्रीकृष्ण सिंह, अनुग्रह बाबू, रामचरित्र बाबू,लाला बाबू जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के संपरकी और विद्वता से भरे डाक्टर साहब बेगूसराय जिले की शान थे। वे आईएमए के मुंगेर और बेगूसराय जिले में संस्थापक सदस्यों में थे। मंझौल में बच्चों के लिए भविष्य भारती स्कूल गांधी जन्म शताब्दी पर 1969 में खोलकर उन्होंने नया कीर्तिमान कायम किया। वे मंझौल आरसीएस कालेज,मंझौल रेफरल अस्पताल आदि खोलने में अगुआ दस्ता में रहे। एक शिक्षाविद् समाज सुधारक ,भाषण बाज और चिकित्सा के अद्वितीय रत्न को प्रकृति ने छीन लिया। लंबी उम्र मिली। अब दूसरा डा चंद्रदेव कोई पैदा शायद ही ले।
शोक की लहर देर रात उनकी निधन की खबर फैलते ही जिले में शोक की लहर छाई हुई है। मंझौल के लिए उनका जाना एक सदी के अंत होने के बराबर है। गुरुवार सुबह से उनके मंझौल स्थित आवास पर अंतिम दर्शन करने के लिए लोगों की भारी भीड़ जुट रही है।
नमन श्रद्धांजलि