न्यूज डेस्क : राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की आज 47वीं पुण्यतिथि है। आज पूरा देश उन्हें याद और नमन कर रहा है। 24 अप्रैल 1974 को राष्ट्रकवि दिनकर का निधन हो गया था। दिनकर एक ऐसे कवि थे जो हमेशा जनता के दिलों में रहा करते थे। दिनकर समय को साधने वाले कवि माने जाते थे। इसीलिए उन्हें एक साथ ही ‘जनकवि’ और ‘राष्ट्रकवि’ दोनों कहा गया है। देश की हार जीत और हर कठिन परिस्थिति को दिनकर ने अपनी कविताओं में उतारा है।
देश की आजादी की लड़ाई से लेकर आजादी मिलने तक के सफर को दिनकर ने अपनी कविताओं द्वारा व्यक्त किया है। जितने सुगढ़ कवि उतने ही सचेत गद्य लेखक भी थे। आज़ादी के बाद हमेशा समय-समय पर सिंहासन के कान उमेठते रहे। दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बेगूसराय जिले के सिमरिया ग्राम में हुआ था। दिनकर के पिता एक साधारण किसान थे। जब वो दो वर्ष के थे, जब उनके पिता का देहावसान हो गया था। फिर दिनकर और उनके भाई-बहनों का पालन-पोषण उनकी माता ने किया। साल 1928 में मैट्रिक के बाद उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान में बीए किया। वह मुजफ्फरपुर कालेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे। भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर भी कार्य किया। उसके बाद भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार बने।
रवींद्रनाथ ठाकुर इनके प्रेरणा श्रोत रहे: भारत सरकार ने समय-समय पर विभिन्न सर्वोच्च पुरस्कारों से सम्मानित किया जिनमें 1959 में पद्मभूषण और साहित्य अकादमी पुरस्कार 1972 में भार तीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रमुख हैं। 1999 में इनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया। दिनकर पर हरिवंश राय बच्चन का कहना था, ‘दिनकर जी’ को एक नहीं बल्कि गद्य, पद्य, भाषा और हिंदी के सेवा के लिए अलग-अलग चार ज्ञानपीठ मिलने चाहिए थे। इनकी प्रमुख रचनाएँ परशुराम की प्रतीक्षा, कामायनी, कुरुक्षेत्र हुंकार, उर्वरशि कालजयी साबित हुई है। इनकी रचनाएँ भातीय सांस्कृतिक जगत की धरोहर हैं ।