प्रिय बेगूसराय वासियों : बेगूसराय में विश्वविद्यालय ना होने से एक आम छात्र की दर्द जरूर पढ़ें

डेस्क / मोनू सिंह गौतम : दरभंगा का एक सौ बीस किलोमीटर का चक्कर लगाना, मानसिक, शारीरिक व आर्थिक परेशानी के साथ-साथ शैक्षणिक व्यवस्था में बाधा तो पहुँचाती ही थी पर अब ये समाजिक प्रतिघात भी लगता है,स्थिति और दयनीय हो जाती है जब चक्कर बहन- बेटी के साथ लगानी हो, ना वहाँ जाने के लिए सुलभ यातायात व्यवस्था और ना सुरक्षा का ध्याय, चक्कर लगाने की प्रोबलिटी उतनी ही जितनी तीन साल की डिग्री चार- पाँच साल मे मिलने की.

आप कल्पना कीजिये गुलाम भारत मे एक अंग्रेज अफसर के डेरे पर एक आम हिंदुस्तानी का क्या हैसियत होता होगा? जो दकियानूसी और धौंसवादी मानसिकता का विकृति गुलाम भारत मे अंग्रेजो में था आज वही आजद भारत में दरभंगा के विश्वविद्यालय पदाधिकारी का भी है।

बेगूसराय को पूरब का द्वार कहा जाता है,पूरब में जाना है तो बेगुसरैया होना ही होगा,हम सब किन मायनो में ख़ास है ये मुझे बताने की जरूरत नही,संभव भी नही है हमारी की सारी ख़ासियत को अपनी इतनी छोटी शब्द हैसियत से लिख सकें..पर इतना जरूर समझिए,आजादी के बाद जब व्यवस्था एक देश को बसा रही थी तब बेगूसराय जैसा उपजाऊ-उर्वरक-बारदोली भूमि को मुख्यतः ढंग से अपनाया गया,जिसका परिणाम है कि अधौगिकी एवं राष्ट्रवाद का धुन साथ – साथ गुनगुनाया,राजनीतिक अवसरों के विकास को लेलीनग्राद कहा गया,तो दिनकर की असाध्य साधना परस्पर बखूबी उत्कर्षो का केंद्र रहा।

सारी भूमिकाओ को दरकिनार कीजिये, और आज के मेरे स्नेहशील बेगूसरायवासी सोचिए,करीब तेरह सौ अगड़ों-पिछडो का गाँव,हिन्दू- मुस्लिम का क्षेत्र,गंगा- बूढ़ी गंडक का किनारा,श्री कृष्ण बाबू की प्रतिज्ञा,दिनकर का हुँकार,राम शरण शर्मा के इतिहासिक खोज में भविष्य का बोध,सबों का एक मात्र धर्म,स्वाभाव,प्रतिकार,प्रतीक – शिक्षा !

हमारे इस कॉमन आडेन्टिटी का क्या हश्र बना रखा है हमने? ना तो महाविधालय का एक श्रृंखला तैयार करवा सकें जो जिला के लाखों युवाओ के मेधा, ऊर्जा को संकलित कर के क्षेत्र में विकास,विज्ञान और सर्वहित समाज की भाव को गति दे सकें और ना ही शासन मूल भूत शिक्षा इकाई को स्थापित करके विद्वत्ता – आदर्श व्यक्तित्व को सृजित करने की चेष्टा रखती है, शैक्षणिक केंद्रों के समूचित विकास के बिना क्षेत्र का समग्र विकास सम्भव नही है..

हमारे अभिभावक,प्रतिनधि,युवा साथी,माँ, बहनों एवं हमारे कुटुम्बजनों से निम्मत प्रार्थना है की शासन के इस अपेक्षाकृत कार्ययोजना को उनके आंखों के सामने तब तक लहराया जाय,जब तक उन्हें ये चुभने नही लगें और वे या तो हमारी माँगो पर खुल कर प्रतिकार करें या फिर स्वीकार करें, किसी भी राजनीतिक,समाजिक,धार्मिक ,जातिगत और विचार पंथ को त्याग दीजिये और आवाज उठाइये आगामी 23 सितम्बर को जब दिनकर जी के 112वी जयंती पर मांग उठाई जा रही है ,हक से,ठोक के,बजा के ट्विटर पर #BegusaraiWantsDinkarUniversity..

एक छात्र