बेगूसराय के निजी अस्पताल में ईलाज के लिए भर्ती है बेटी , माँ मांग रही भीख , पति नहीं आया पैसा लेकर

न्यूज डेस्क : बेगूसराय में कई निजी अस्पताल ऐसे हैं । जो पेशेंट का ईलाज करने का ठीका ले लेते हैं। परन्तु ईलाज की रकम ज्यादा होने के कारण पेशेंट के घर बाले 15 दिनों तक जमा नहीं करा सके। ऐसा ही एक मामला बेगूसराय के अंग्रेजी ढाला से केशबे गाँव जाने बाले सरक के किनारे बने निजी अस्पताल से आया है। जहाँ एक महिला अपने पुत्री को बीते दिनों ईलाज के लिए भर्ती करा दिया । जिसके बाद हॉस्पिटल के द्वारा ईलाज शुरू कर दिया गया।

जब महिला का पैसा खत्म हो गया तो वह अब सरक पर घूमकर अपनी बेटी का जान बचाने के लिए लोगों से भीख मांग रही है। इस पूरी कहानी में आपको माँ की ममता , डॉक्टर का कर्तव्य , पति का कर्तव्यहीनता और गरीबी हर कुछ दिखेगा। इस सम्बंध में खगड़िया जिले के परबत्ता थाना क्षेत्र के माधवपुर पंचायत निवासी लीला देवी ने बताया कि वह अपनी 20 वर्षीय बेटी का ईलाज कराने के लिए बेगूसराय में भीख मांग रही है। वह दिन के चिलचिलाती धूप में बेगूसराय में दर दर की ठोकर खा रही हैं। उन्होंने बताया कि गांव के ही एक लडक़े ने उनको ईलाज के लिए बेगूसराय भेजा था । वह बताते हैं कि 65 हजार में इलाज का ठीका लिए बोले सब फाइनल करके देंगे । अभी तक 36 हजार रुपया दे चुके हैं।

10 – 15 हजार का दवाइ और जांच में लगा चुके हैं। उन्होंने बताया कि गुरुवार की सुबह से मरीज का दवाई बन्द कर दिया गया है। उनका कहना है कि हॉस्पिटल में बेटी का इलाज करने लिये कहे कि आप ईलाज कीजिये हम पैसा का प्रबंध करके देंगे। लेकिन उन्होंने सुबह में एक रजिस्टर पर लिखने को कहा कि आप लिख दीजिये दवाई बन्द है। बाद में अगर पेशेंट को कुछ भी होगा तो हॉस्पिटल की जबाबदेही नहीं होगी। ऐसे में बेगूसराय की जनता और जनप्रतिनिधियों के सामने बड़ा सवाल यह पैदा हो रहा है कि आखिरकार इतने तादात में खुले निजी अस्पताल पर किसका लगाम लगेगा या फिर गरीब जनता का ऐसे ही ईलाज के नाम पर शोषण और दोहन होता रहेगा।

दूसरे तरफ डॉक्टर का कहना है कि हमने तो मानवता के नाते ईलाज कर रहे हैं। पैसे नहीं मिलने की स्थिति में प्रथम दृष्ट्या हमने अपने धर्म का पालन करते हुए इलाज जारी रखा है। इलाजरत महिला का पति 10 दिन पहले अपने पत्नी का ईलाज हो रहे अवस्था का फ़ोटो और वीडियो लेकर पैसे की तलाश में निकला है लेकिन 10 दिन बीत जाने के बाद भी पैसे लेकर वापस नहीं आ सका है। इलाजरत महिला की माँ अस्पताल के गेट पर बैठकर पूरे दिन रोते रहती है। उसके पास आयुष्मान कार्ड भी नहीं है। गरीबी का आलम यह है कि देश में ऐसे कई परिवार के लोग ठोकर खाते रहते हैं।