न्यूज डेस्क : बेगूसराय के छौड़ाही में दो अलग-अलग पंचायतों के गाँव में हुयी आचानक मौत से हड़कंप मच गया और प्रशासन हलकान है। बाहर से आनेवाले जाँच कराना नहीं चाहते। अधिकांश अधिकारी प्रभार में और पदस्थापित अधिकारी का अता पता नहीं। “जिंदगी मौत ना बन जाये संभालों यारों,खो रहा चैनो अमन-मुशकिलों में है वतन”आज से 22 वर्ष पहले फिल्म सरफरोश में गाया गया यह गीत रोजाना बढ़ते वैश्विक महामारी कोरोना का विनाशकारी रौद्र रूप सबकी याद ताजा करते हुये लोगों के लिये काल बनकर सामने खड़ा है।
जिसने भी थोड़ी लापरवाही की समझो उसका पुरा परिवार ही उजर गया।कोरोना के रौद्र रूप ने सबको बेवस लाचार कर एक ही पंक्ति में ला खड़ा किया है।सावधानी हटी तो समझो जान गयी।छौड़ाही प्रखंड क्षेत्र के दो-दो अलग अलग पंचायतों में दो युवकों की आचानक मौत ने अब सबको डरा दिया है।फिर भी हमलोग सचेत नहीं हुये तो यह आँकड़ा आगे बढ़ने की किसी भी संभावना पर ब्रेक नहीं लगा सकता है।प्रशासन नहीं बल्कि स्वयं के भरोसे जिम्मेवारी के साथ गाँव समाज परिवार की सुरक्षा के लिये बड़ी एहतियात बरतने की आवशयकता महसुस होने लगी है।
दो अलग-अलग पंचायतों में दो युवकों की मौत से प्रशासनिक अधिकारियों और लोगों में हड़कंप विगत 24 घंटे में दो अलग अलग पंचायतों में दो युवकों की आचानक मौत से जहाँ प्रशासनिक अधिकारियों के साथ-साथ हड़कंप मचा दिया है।वहीं आमलोगों को और भी सावधानी बरतने की नितांत आवश्यकता बढ़ गयी है। बताया जाता है कि मालपुर पंचायत के लखनपट्टी और परोड़ा पंचायत के परोड़ा गाँव में एक-एक युवकों की मौत ने सबको सकते में डाल दिया है। स्थानीय लोगों के मुताबिक दोनों की खाँसी सर्दी बुखार सहित अन्य लक्षण थे।
बताया जाता है कि तबियत बिगड़ने के बाद दोनों की मौत इलाज में ले जाने के क्रम में हो गयी।लखनपट्टी के युवक की उम्र 35 वर्ष,जबकि परोड़ा के युवक की उम्र 33 वर्ष थी।हलांकि दोनों में से किसी के कोरोना टेस्ट स्थानीय स्तर पर नहीं कराये गये थे।मृतक के परिजनों और स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक दोनों की मौत टाईफाइड होना बताया जा रहा है,लेकिन ऐहतियातन दोनों के परिजनों को प्रशासन को कोविड टेस्ट कराना चाहिये।चुँकि ग्रामीण डरे हुये हैं।ऐसे में परिजनों के कोविड टेस्ट के बाद लोगों को थोड़ी राहत की साँस मिल सकती है। बाहर से आनेवाले एवं स्थानीय लोग कोरोना लक्षण के बावजूद जाँच कराना नहीं चाहते।
सबसे बड़ा संकट और चुनौती प्रशासन के समक्ष यह है कि बाहर से आनेवाले एवं स्थानीय लोग जिन्हें कोविड के लक्षण महसुस होते हैं।वह जाँच कराना नहीं चाहते।परिवार के लोग चुपके चुपके बात छिपाये रहते हैं,और स्थिति बिगड़ने पर इलाज के लिये भागते हैं।तब तक बहुत देर हो गयी होती है।आखिर मेडिकल विभाग और प्रशासन करे भी तो क्या करे।ऐसे मुश्किल घड़ी में आमलोगों के साथ-साथ जनप्रतिनिधियों समाजिक कार्यकर्ताओं राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को एकमत होकर ऐसे लोगों के खिलाफ सख्ती से पेश आकर प्रशासन और स्वास्थयकर्मियों का सहयोग लेकर क्षेत्र को बचाने की बड़ी जिम्मेवारी निभाने की जरूरत महसुस होती है।