बेगूसराय (वीरपुर) । जिले के विभिन्न प्रखंडों में दुर्गा पूजा की तैयारी काफी जोर-शोर से चल रही है ।लेकिन वीरपुर प्रखंड क्षेत्र के भगवानपुर गांव में दुर्गा पूजा अपने आप में एक खास महत्व रखती है ।भवानंदपुर गांव स्थित दुर्गा मंदिर में पूजा-अर्चना पिछले 339 वर्षों से हो रही है ।यहां पर दुर्गापूजा अंग्रेजी हुकूमत के समय 1680 से शुरुआत हुई थी ।
72 वर्षीय ग्रामीण पशुपति कुमार सिन्हा ने पूछने पर बताया कि सिराजुद्दौला के शासनकाल के बाद ब्रिटिश सरकार के द्वारा राजस्व वसूली हेतु प्रतिनिधि के तौर पर भवानंदपुर गांव में पश्चिम बंगाल के बेलाग्राम शांतिपुर नदियां को पार करके यहां पर तीन अपने सहोदर भाई मैं दान सिंह ,महान सिंह और सुजान सिंह आए थे ।तीनों भाइयों के द्वारा भवानंपुर गांव में देवी दुर्गा के प्रतिमा को स्थापित किया गया था ।तब से तीनों भाइयों के वंशावली बंगाली कायस्थ परिवार द्वारा प्रत्येक साल देवी दुर्गा की पूजा पूरे विधि विधान पूर्वक की जाती है ।भवानंदपुर गांव में दुर्गा पूजा की सबसे अलग बड़ी खासियत है कि बंगाल के पूर्वज परिवारों के द्वारा पूजा का खर्च वहन प्रत्येक वर्ष की जाती है। दुर्गा पूजा में किसी भी ग्रामीण से एक भी रुपया चंदा वसूली नहीं किया जाता है ।ग्रामीण ओमप्रकाश सिन्हा ,मनोरंजन सिन्हा बताते हैं कि 11
मेड पतियों के द्वारा पूजा कराई जाती है ।प्रत्येक वर्ष मेडपतियों का परिवर्तन होते रहता है ।
कर्म के अनुसार मेडपति पूजा के खर्चों का वाहन करते हैं ।
उन्होंने बताया कि मां दुर्गा की असीम कृपा से इस बंगाली कायस्थ परिवार से कई बड़े अफसर बने हैं ।इनके दरबार में कोई भक्त श्रद्धालु आने वाले श्रद्धा से जो भी मन्नत मांगते हैं, तो दुर्गा मैया उनकी झोली भर देती है ,तथा सभी मनोकामनाएं को पूरा करती है भवानंदपुर दुर्गा दुर्गा मंदिर में पूजा का प्रारंभ कलश स्थापना जिउतिया पर्व के उपरांत छागल की एक बलि देने के बाद शुरू की जाती है ।पष्ठी तिथि के दिन गंध अधिवास में दुर्गा मां की मूर्ति का जागरण किया जाता है । सप्तमी के दिन मूर्ति को दुर्गा मंदिर में प्रवेश कराया जाता है ,तथा उसी रात्रि में वलि एवं अखंड दीप जलाया जाता है ।जो दीपक विजयादशमी के तिथि तक अनवरत मंदिर के अंदर चलते रहता है ।दीपक जलने के बाद कभी बुझे नहीं। इसलिए काफी सुरक्षित तरीके से दीपक को रखा जाता है ।
सप्तमी से लेकर विसर्जन तक कुल 12 अखंड दीप जलते हैं। इसके अलावे नवमी तिथि की रात्रि में 15 और अतिरिक्त चिराग जलाया जाता है ।मेढपतियों द्वारा मंदिर के अंदर बिजली बल्ब के प्रकाश की व्यवस्था नहीं कराई जाती है ।सिर्फ चिराग से ही मंदिर के अंदर प्रकाश की रोशनी होती रहती है।