नवरात्र के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना की गयी

नावकोठी (बेगूसराय) प्रखण्ड क्षेत्र अन्तर्गत डफरपुर पंचायत में वृंदावन और छतौना, नावकोठी में पुरानी दुर्गा स्थान, वैष्णवी दुर्गा स्थान और फील्ड में,गौरीपुर तथा देवपुरा में कलश स्थापना के साथ ही दुर्गा पूजा की शुरुवात गयी।वहीं प्रखण्ड क्षेत्र अन्तर्गत सभी घरों में भी भक्तों ने कलश स्थापन के साथ शैलपुत्री की पूजा की। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों के पूजन का विधान हैं, जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है। पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री रूप का पूजन होता है।

शारदीय नवरात्रि का व्रत और पूजन हिंदी पंचांग के अश्विन माह के शुक्ल पक्ष में होता है। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों के पूजन का विधान हैं,जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है। पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री रूप का पूजन होता है।देवी भागवत पुराण के अनुसार माता सती ने प्रजापति दक्ष के यज्ञ विध्वंस के लिए आत्मदाह कर लिए थे। उन्होंने एक बार पुनः मां शैलपुत्री के रूप में पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लिए थे।पर्वतराज की पुत्री होने कारण ही इन्हें शैलपुत्री कहा गया। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना और उनका पूजन विधिविधान से किया गया।

इसके बाद मां शैलपुत्री का पूजन किया गया।माता शैलपुत्री देवी पार्वती का ही एक रूप हैं,जो नंदी पर सवार, श्वेत वस्त्र धारण करती हैं। उनके एक हाथ में त्रिशुल और एक हाथ में कमल विराजमान है।मां शैलपुत्री को धूप,दीप,फल,फूल, माला,रोली,अक्षत चढ़ा कर पूजन किया गया।मां शैलपुत्री को सफेद रंग प्रिय है,इसलिए उनको पूजन में सफेद फूल और मिठाई अर्पित की गयी।मां शैलपुत्री के मंत्रों का जाप करने से व्यक्ति के धैर्य और इच्छाशक्ति में वृद्धि होती है।मां शैलपुत्री अपने मस्तक पर अर्द्ध चंद्र धारण करती हैं, इसलिए इनके पूजन और मंत्र जाप से चंद्रमा संबंधित दोष भी समाप्त हो जाते हैं।श्रद्धा भाव से पूजन करने वाले को मां शैलपुत्री सुख और शान्ति के साथ समृद्धि प्रदान करती हैं।