बिना नशे के ड्राइविंग करते समय अगर पुलिस फर्जी मुकदमा ठोक दे तो क्या होगा? जानें – MV एक्ट से संबंधित अधिकार..

बिहार में शराबबंदी एक लंबे अरसे से है। उसके बावजूद भी इस से संबंधित खबरें अखबारों में मिलना काफी आम बात है। इन सबके बीच शराब से संबंधित एक और मुद्दा है जिसका सामना अक्सर लोगों को करना पड़ता है, और यह है शराब पीकर ड्राइविंग करना। जिसे कि मोटर व्हीकल एक्ट के तहत एक दंडनीय अपराध माना जाता है और मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 185 शराब पीकर ड्राइविंग करने को प्रतिबंधित करती है। तथा इस कार्य को दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखती है।इसलिए व्यक्ति को शराब पीकर ड्राइविंग नहीं करनी चाहिए। यह न सिर्फ अपराध का मामला है बल्कि दुर्घटनाओं की भी एक अहम वजह है।

कभी कभी बिना वजह भी नशे में ड्राइविंग करने का आरोपी बना दिया जाता है

कभी कभी ऐसा देखा जाता है कि किसी व्यक्ति ने ट्रैफिक के छोटे-मोटे नियमों का उल्लंघन किया हो। लेकिन पुलिस बिना वजह भी शराब पीकर गाड़ी चलाने का आरोपी बनाकर उस पर मुकदमा कर देती है। हालांकि ट्रैफिक के कोई भी नियमों जैसे सिग्नल तोड़ना, सीट बेल्ट का यूज ना करना या डाक्यूमेंट्स का अपडेटेड ना रहना यह सभी मोटर वाहन अधिनियम के तहत अपराध की श्रेणी में ही आते हैं। लेकिन शराब पीकर ड्राइविंग करते हुए पकड़े जाना एक गंभीर अपराध माना जाता है। देखने में यह भी अक्सर आता है कि छोटे अपराध होने पर भी किसी व्यक्ति पर अन्याय पूर्ण तरीके से झूठा मुकदमा बनाकर उसे शराब पीकर गाड़ी चलाने के आरोपी बना दिया जाता है।गाड़ी चेकिंग के दौरान अक्सर देखा जाता है कि जब नशे में ड्राइविंग करने का आरोपी पकड़ा जाता है तो पुलिस वाले ऐसे व्यक्ति के सांसो की जांच की जाती है। इसे ब्रेथ एनालाइजिंग मशीन के द्वारा किया जाता है। अगर इस जांच की रिपोर्ट पॉजिटिव आती है तो उस व्यक्ति पर सेक्शन 188 मोटर व्हीकल एक्ट के तहत मुकदमा चलाया जाता है।

क्या हैं मोटर व्हीकल एक्ट से संबंधित अधिकार

मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 185 के तहत पुलिस कर्मी को यह अधिकार नहीं है कि वह शराब पीकर गाड़ी चलाने के आरोप में किसी भी व्यक्ति का चालान काट दे। बल्कि पुलिस को ऐसे व्यक्ति को फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है। जब आरोपी मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत किया जाता है तो यह विकल्प उसके सामने रखा जाता है कि वह या तो जुर्माना भर दे या यह साबित करें कि उसे झूठे तरीके से फंसाया गया है। वह शराब के नशे में गाड़ी नहीं चला रहा था।अगर आरोपी आरोपों को स्वीकार कर लेता है तो उसे जुर्माना लेकर छोड़ दिया जाता है लेकिन अस्वीकार करने की स्थिति में उसके मामले के विचारण के लिए भेज सकते हैं।

विचरण की प्रक्रिया में आरोपी को है अपना पक्ष रखने का अधिकार

सेक्शन 185 मोटर् व्हीकल एक्ट के तहत किसी भी व्यक्ति के द्वारा शराब पीकर गाड़ी चलाने पर 10000 का जुर्माना देना होता है। अगर व्यक्ति आरोप स्वीकार कर लेता है तो उसे ₹10000 जमा करने होते हैं और आरोपों को अस्वीकार करने पर उसके विरूद्ध मुकदमा चलता रहता है।जिसमें पुलिस अधिकारियों का बयान दर्ज किया जाता है। ब्रेथ एनालाइजर मशीन की जांच की जाती है। प्रत्यक्षदर्शियों के बयान लिए जाते हैं तथा अन्य भी विधिक कार्यवाही की जाती है। इस दौरान आरोपी चाहे तो अपनी जमानत करवा सकता है।

सेक्शन 188 मोटर व्हीकल एक्ट के तहत दर्ज मुकदमा इतना गंभीर भी नहीं होता है। अगर आरोपी पर अपराध साबित हो जाए तो भी न्यायालय जहां तक हो सके उसे सिर्फ जुर्माना करने का ही प्रयास करती है। इससे व्यक्ति को न्यायालय में विचारण की कार्यवाही से कभी घबराना नहीं चाहिए बल्कि निर्दोष होने की स्थिति में अपने पक्ष को अपने मामले से संबंधित तथ्योँ को न्यायालय के सामने जरूर रखना चाहिए।